तपती धूप में भी हिम्मत न हारी।
अंतिम सांसों तक रखा युद्ध ज़ारी।
नमन उन शहीदों को जिन्होंने,
दुश्मनों को शिखस्त दी करारी।।
देश की खातिर जो सिर कटा बैठे,
हंसते हंसते जो जान गँवा बैठे।
रोम रोम में देश के लिए जुनून था,
दहकते अंगारों में कहाँ सुकून था?
सींची जिससे जीत की फसल,
वो पानी नहीं वीरों का खून था।।
माटी की खातिर शरीर माटी में मिला बैठे,
हंसते हंसते जो जान गँवा बैठे।
हार्दिक श्रद्धांजलि उन ज़िन्दादिल इनसानों को।।
‘कारगिल’ के साथ ‘विजय दिवस’ जोड़ गए,
गंवा कर जान करोड़ लोगों के हृदय तोड़ गए।
देशवासियों की खुशी की खातिर,
घर-परिवार रोता छोड़ गए।।
जो आँसूओं के घूँट पिला बैठे,
हंसते हंसते जो जान गँवा बैठे।
हार्दिक श्रद्धांजलि उन ज़िन्दादिल इनसानों को।।
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